سه شنبه ۳ خرداد
شعر دوبیتی
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بهـار مـا نمي آيد در اين اوضاع يخبندان
به كام ما بـُوَد زهري همه اينها در اين قندان
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اي پسر اَر تو را بـُوَد دانش و عقل و شعور
غرق شقاوت ببين حرف صلاح وحرف زور
جمله حر
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بيدار دلان را غـم بر عيش و طرب نيست
غم خوردن آنها به قيامت كه عجب نيست
پوينــد
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حسن كار خدا گفتي و ابر و باد و بارانــش
كز اول تا الي آخر همه باشند به فرمانــش
به
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بيدار دلان را اثـر از لهـو و لعـب نيسـت
آن بـي اثـر از عالـم اسرار و ادب نيست
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شب قــدر است و دارم ايــن نـظــاره
كـه فيــض حق رســد بــر من دوبــاره
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در این آشوب ورداورد دل مست
ز عطر دلبر نیکو سرشت است
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اول خــدا كه علـم طبابـت قــرار داد
لقمـان بگفت و علم خـدا را انتشــار داد
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..........................
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در میان من و ما فاصله ها میرقصند
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اگر گاوی رود در کاخ شاهی
از او نیست انتظار پادشاهی
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پايمال گمرهـان شد،فردي كه خودسر آمـد
از خودسري خود بود،همــراه گمــره آمـد
هـر فـرد
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جناب حضرت عشق فرموده اند :
من که از آتش دل چون خم می در جوشم
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درد پنهانی
باز امشب دل من در بند نگاهت زندانی است
دریای آرام وشب زیبای دلم طوفانی است
ه
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ياران تفكر يـار ، هِـي دَمبـدَم بـر آمـد
الهام فكـر آن يـار باز هم بر اين سـر
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مـــن مـا لــــك مُـــلـك خــــودم
كــي مـا لــــك مُـــلـك تـــ
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زنها نه فرشته اند
نه ضعیفه
بلکه...
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اي برادر در جوانـي علم و دانش را بيـار
علم و دانش درجواني نيك و تَر آيد به كار
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مادرفرشته هستی خدا به احترامت جهان آفرید
آنقدر کم بود پیش مهرت بهشت جاودان آفرید
از آن لحظه آف
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هـدايــت گريــهاي حــق را نگـــر
هدايـــت كنـــد آدم از يـــكديـــگر
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راه خدا پرسـتــي ،فقر است و تنگ دستـــي
در راه خود نمايي، نـتوان خــدا پرستـــي
اي
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دوستان بوته شمشاد خریدند ولی من به یک شاخه گل یاس کفایت کردم
🌹🌹🌹🌹❤️❤️❤️🤍💐💐💐💐
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بـُوَد ديــن حـق ،بــــهتر از انگبـيـــن
چـه شيـرين و باشـد بــر اين مـسلـمـيـ
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پــدر تـربـيـــت گر نـمايـــد پـســـر
هـدايــت گــري مي بُـوَد ، آن پـ
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پــســر گــر لجـاجـت كنـــد بـا پـــدر
بـه هــر جــا رَوَد مي شــود دربـ
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بر سر سفره ی خالی نان خالی می زنیم
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جانـا بيــا به نظم و نظام جهـان بكوش
زآن نظم و زآن نظام ، لباس هنـر بـپوش
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من از روز ازل ياران ، به راه اين جهان بودم
هرآن راهي كه پيمودم نديدم ازجهان سودم
تما
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معلم آیه ای از جنس نور است
درون سینه اش آواز شور است
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ياران تـراز عدل خدايي بـرابر است
هركس عدالتش نَـبُـوَد ، مثل كافر است
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دعا کن بر زمین سامان بیاید
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من كه از نيكو صفاتي نزد مردم رو سپيدم
عيب خود را گر بديدم عيب مردم را نديدم
عيب جو
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باور کس، از بدش بدتر کنم
خاطر تو، این دلم پر پر کنم
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اگر ز روی مروت گذشتی از...
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روزه از کبر و غرور و حرص و آز
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مهمانیِ مـاهِ خـدا آمـد به پایان - گردید عیدِ مسلمین و جشنِ ایمـان
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هــر نـفــري را كـه نــكــو سـاخـتـــش
تــا كــه دگــر بــاره نـــپرداخـتـــ
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بـه دنيـــا كـار اگــر آلــوده مـي بـود
بـه عـقـبـــي كـار گـردد رو بـه بـهـب
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گر عمر من و چرخ كهن سرنگون شــود
كي بينم آن خداي كه بر من عيـان شــود
گر من عمل
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گر تو را دوست بدارم نه عجب از دل مست
به جهان وحدت موجود ز عشقست که هست
اگر از ذره بپرسی یا که کر
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مَـشـــو گـويـنـــده حـرف دروغـــي
اگــر دانـــا دل و روشـــن فـروغـــي
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مُلک دنیا برود دخمه گورت بنهند
رفته آن یار نکو، همدم مورت بنهند
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در دايـره دنيــا هـر قدر كـه گرديـــدم
علـم وادب و دانـش تا ديـدم و بـرچيـــدم
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رفـيـقـــان بـشـنـويــد و حـق مـگويـيـــد
ره حـق را در اين دنيــا مـجـويـيـــ
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سرچشمه ی نگاه تو فانوس راه شد
قلب شکسته با سخنت رو به راه شد
خورشید تابناک جهانی معلمم
هر کس گر
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زِ مهـر خـود ، به عهــد حـق وفــا كُــن
بـه عهــد حـق ،خـودت را آشنــا كــن
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تورا من شکر گویم روزه دارم
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رو به فلك مـي رويـم ،مـا به تولـي دوست
رفتــن مـا همــره صحبـت اعلاي اوست
كوشش م
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هـر آدمـي كه ظلم نـمي بوده بـر سـرش
هـر كـه بـبيند آن ، بـشود ظلـم باورش
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نصيحتي كنم ات ، اي بـرادرا بِـپسنـد
كه مرگ در پس اين گردنت نهاده كمند
برا
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دَمَـت خورد بر دَمَـم ؛ همدم دمت گرم
دلـم را شُـستـی از مـاتـم ؛ دمـت گـرم
نــوشــتــم ..؛ روی
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شبِ قـدر و فیوضاتش فراوان - نهیم بر سر، دهیم دل را به قرآن
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هرعاشق بي دانش خواهد زِخود كاري كند
اما حساب اينجا بودكزدانش آن كاري كند
دانش به مغ
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خانوم هستی قاسمیان از شعرای معاصر در همین سایت , شعری را با عنوان ( نمی دانم کجایی ) را سروده اند با
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تا كه نجواي علل ازكج رَوي دركارتوست
بيهوده با ديگران آن تهمت و گفتار توست
هر علل از
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بـي خـبران را بگــو،مـن خبـر آورده ام
هـر بـد و هـر نيـك را در نظـر آورده ام
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بارهـا دل طلب جام جـم از مـا بُــوَدش
آنچه درخـود بُــوَدش ، پيرو معني بُــوَدش
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هـر كه بيند عاشقي بي دل ، فـريبا مي شود
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آمد نسيم آن گُل مشكيـن عذار دوست
آن باد خوش نسيم ،زِ دشت و ديار دوست
تا مـي
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وقت است که گل دهی اگر خارایی
حیف است که گل دهی ز کف خار، آیی
از سنگ دمیده سبزه و صدها گل
وقت ا
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آمـدم تا که سلامی بدهیم و برویم
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خــداونــدا تـو بـر مُـلـكـــت اميـــري
تــو هــر افتــاده اي را دسـتـگيـ
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اگـر بــر خلــق حــق ،آتــش فــروزي
تــو هـم بايـد در آن آتـــش بــســـوزي
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شمع دیوانه شد ، شعله را چو دید
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غمـــي دايـم دلــم را مي فشـــارد
غــم از دوران بــراي مـن بيــ
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هـر كـس بـه دانـــش پـيـــرو اســت
در راه دانـــش رهــرو اســ
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يا للعجب چه چــاره كنــم من به روزگـار
بـر من ستـم نـموده به يك عمــر بيشـمـار
بـر
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تا خلـق هـر زمانـه نـترسـنــد از خــدا
كــي مي كنند به عهد خداوند خود وفــا
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