يکشنبه ۲۵ آبان
شعر متن ادبی
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درد امانتی ست شخصی ، نه ارثی که نسل به نسل بگردد
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عشق، تنها زمانی ماندگار است که ستون هایش با احترام ساخته شود.🌿 عشق، وقتی زنده میماند که احترام نفس
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بانوی کهن ای فروغ تاریخ
ای آینهدار کاخ زرمیخ
در دامن خاک تیره خفته
وز تابش نور ماه و مریخ
خوا
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فصل تابستان فرا رسید و...
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با جان آمیختهست آن دوستی که نه از نیاز، که از نذرِ معنا زاده شده؛
رفیق، آینهایست که در تاریکیِ
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شاه ماهی برای تو مینویسم
اما دلیلش مجهول میماند...
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ترسناک تر از همه اینها خداست ... !
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با تندی و اهانت ارزش های تو را خورد میکنند و خود را پاک و تو را نجس جلوه میکنند
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وطن همچون مادر و مردمان مثاله فرزندان آنند
کدام فرزندی یارای تحمل تجاوز به مادر دارد؟
کور باد چشم
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سالهاست که ریشه هایمان راه می رویم.
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به راستی دروازه دل جز برای محبوب
روا نباشد گشودنش
چه آنکه دل به مهر یار معنا یابد
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کودک شیطان و بازیگوش عشق
چشم خود را بست و تیر از زه کشید
لامروّت چشم خود را وا نکرد
حاضرین، در با
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گاهی فکر میکنم حسادت حس قشنگیست
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سرود عجیبی است
زمزمه گرگهای وحشی
در طلوع شب سرد؛
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گوودن ئیره یول آزمیش ملک دیر یوخسا اورا هارا بیراهارا ⚘ترا چون هست لایق بهترینها
چرا راضی شوی بر
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نشسته ام برلب چشمه ای
که بوی بارانِ شبنم ازآذر زمین دارد و...
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العجب! میغات سٌلکی در ثنآیم یا که نه
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نمیدانم خوشحالی کجایی؟خوشحالی مگر خانه ما چقدر دور است که مدت هاست سری نمیزنی؟
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همان نگاه،همان صدا،همان لبخند همیشگی...
نه
من تورا حتی زمانی که با موهای سفید و تنی خمیده،به خودم
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از آدمها خستهام...
از شادیهای تصنعیشان،
از غمهایی که بوی دروغ میدهد.
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تا التیام پذیرد زخم های خشمگین که خون بی مهری میفشاند
جراحاتِ پر شمار که دهان باز کرده تا فریاد اس
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خزانِ که آخرین پیامش ، پیرهن خونین چکاوک است بر شاخهء بریدهء بریده، که حکایت دارد از ستمگری های فصل
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به نام خدایی که برای انسان عقل آفرید
به نام خدایی که به انسان قدرت تعقل بخشید
مانند لی
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خبر میرسد از رمیده سر کاروان
شـده بر هـمه جـمع راه زن روان
رسیده به من دزدی ، یاران! کمک!
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با تو رفتم من هم انگاری...
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در اولِ کـلام؛
معصـومـهٔ معصـومـه ام سـلام.
همسـر گُلـم،
مـاه رویِ هَمـدلـم؛
حـال و احـوالْ،
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کسی که هوای حوایش را ندارد
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...مضراب و زخمه ی خویش...
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"بهاي أدمی بهشت است، ارزان نفروشیم"
هبوط به بهای از کف رفتنِ بهشت،واقع گشت،
چنانکه جنابان حوا و آد
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امشب دیوانه میشوم و التماست میکنم!
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پرسیدم: هنوز به او فکر میکنی؟
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باران.
ماه ها بود که دلم برای باران و صدای نازکش بیتابی میکرد و همینطور چترهایم که هر دم
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گفت: «پنجره را باز کن...»
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گفتم: راز یا آواز؟
گفت: هر آواز رازی در خود دارد...
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گفت: کدام را بیشتر دوست داری؟ آوای آبها یا نغمهی پرندهها؟
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گفت: «پرنده نیستم، اما پرواز میکنم...»
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گفتم: آفتاب و باران...
گفت: هر دو جلوهای از عشقند...
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گل و گلدان گفتگو میکردند...
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موج و دریا گفتگو میکردند...
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برگ و باد گفتگو میکردند...
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هوای ابری، هوای زندگی است. هوای لبخند گل رز و بغض گل غنچه است. گاهی به ابرها تاج عزت می بخشد؛ و گاهی
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در دیار عاشقان بر سر بعد مسافت ، جنگ نیست
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آینه و پنجره با هم گفتگو میکردند...
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پنجره اتاق را که به انتظار برف های نشسته در کُنج حیاط کنار می زدم...
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چند روزیست وقتی جلوی آیینه می ایستم، خودم را در آن نمیبینم!
نمی دانم آیینه خراب شده است یا من!
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