يکشنبه ۲۵ آبان
شعر سپید
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برگهای پاییز
روی درختان خشک شد
وقتی اولین بار دیدمت.
و ...
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بر پیشانیِ افق
آنجا که میزبانِ ماه می شوی
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شهدختِ رزها بوسه ات از زخمِ لبهایِ غزل / سرخ است همچون اعتراف بر مرگِ بانویِ جنون
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اینجا، جایی برای ماندن نیست....
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تو بگو از قفس فکر من امروز
پریدی به کجا؟
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تشنه ی نگاهی ام
که فرصت سبز شدن نداد
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از سیاهیهای شب
راهم به در شد
به در صبح رسیدم
فصل هم صحبتی ماه به سر شد
همه روزم گذر کوی تو ب
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بی تو همانگونه ام
که رفته ی...
با تو و بی تو رفتن"
خانه ی دلم
مشق آتش می نگارد
بر چلهچله های
غ
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این شعر، گواهی است بر اینکه حتی خمیدهترین پنجرهها، هر روز برای استقبال از نور، به شیشه میچسبند
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گوشهی پنجرهی کنج اتاق
سبدی بود پر از یاس سپید
همه هم نام تو بودند
و صدا میکردند نام تو را
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من تورا مینویسم
نه با حرف
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پرگار،بی دلهره،
دور نقطهای خیالی میچرخد
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میان دل و قالب، همیشه فاصلهای بوده است؛
فاصلهای که نه به سلامی میرسد،
نه به نگاهی،
فقط سکوتیس
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غرق بودم در شب،
که تو از راه رسیدی
زیر سوسوی چراغ.
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با بلیتی چروک
درایستگاه تنها
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«امشب، با دردی سنگین در سینهام بیدارم.
احساسی دارم که از روح تا تنم را گرفته.
صفحات زندگیِ سیسال
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غم، مهمان ناخواندهای است که میرود.
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«زوال»
این تن خسته و بیجان را،
این دل گمشده در خزان را،
این روح آزرده از زخم زبان را،
این چش
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تا چشم کار میکند
عرق از پیشانی ام می چکد
که در بیداری آفتاب
چشمان خمارم
قلب بامداد را بلرزاند
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خودرو
ترمز عطسه می کرد
گاز خوابش می برد
گاهی چرت می زد
گاهی می پرید از خواب.
کلاچ بیچاره هم د
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ای آفتابِ جان
این جسمِ خواب رفته ی تهی
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قفس را نه میگشایند،
نه میسازند،
قفس را باور میکنند…
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قلبم را به بازی گرفتند،
آنان که دم از عشق میزدند؛
روحم را با شلاقِ ندامت کُشتند،
آنان که از صد
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در میانهی جانم،
تشعشعات نوریست از انوار عدالت،
پرتویی از دستِ نخستِ ایمان،
و ستونی از صلابتِ یق
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اینجا...
خاکریز اول
به چشمان خدا نزدیک تر است....
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حتی گنجشکها هم
شاعر می شوند از دیدن این همه زیبایی!🍂🍇
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عشقی...
که با تیغِ زمان بریده شد
و بر زمین افتاد،
مثل تنِ پرندهای زخمی.
تو...
زهرِ شیرینِ تن
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عشق، درنگ میان دو نگاه
نگاه تو و.......
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گلهآرزویی گرگ زده
دفتر نیم سوزِ خاطرات کودکی
جورجامی لبریز از نم چشم
از کدام بگویم؟
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نگاه کن!
هنوز...
واژه ای
نفس دارد
در سطر های نیم بند
بیاو شکوفه کن!
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چرا نایستم؟
رازِ ماندن در «ایستادن» است
در «حرکت»
در جاری شدن درمسیر نور
در چنگ زدن به میوه
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در ملاقات با شعر هایم
رها کن حرف های حبس شده را
تا بر خیزم از لا به لایشان
بردارم کلماتم را
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در این شهر قدم میزنم،
آهستهتر از رؤیا.
روی هر خانه را میخوانم،
مثل کتابی بینام،
که نویسندها
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فکرِ تو اَم
تو،
فکرِ همه؛
همهمه
فاصله انداخت
بینِ من و تو.
آگرین_یوسفی
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کاش می شد سینه را شکافت ، دل را پرواز داد ...
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من همان حکایت همیشگی
خط و منحنی و سازه های شاعرانه ام
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🕯نشر خوبی ها🕯💥:
نیزبانِ تو
از نیزارِدورِ دستِ سکوت میگذرد.
و من
چشم در راهِ نوایی ام
که از ح
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وجودم کتاب کهنه یی ست ...
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الهگانِ انتقام مصلوبِ چشمانی که نیست / این حسرتِ آیینه ها ، از جنسِ بارانت که نیست ؟
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میرپنجی باید،نادری دیگر،
باطنین اندیشه و زوزهٔ تبر.
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* طلوعی دیگر
روزها از پی هم میگذرند
و همه غرق در عادت
بچه ای شیون بودن سر داد
پسری
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🍂🍁 . . . 💛🧡
سکوت کردم ... نه برای فاصله
برای شنیدن صدای دلت از شعرهایت ...
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میگفت: قرنی خواهد آمد
که کوهها نفس میکشند،
و ابرها بر شانهی مردم مینشینند
چون کبوترانی که
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می دانم هیچ قرارِ دلی از یاد نخواهد رفت
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در نبودت
تریلی آرزوهایم
در مسیر سرنوشت
قیچی کرد
تا از نفس های بریده ام
بوی مرده بیاید
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هوا سرد بود،
اما دلها گرم.
ابرها
آسمان را
با خاکستریِ آرامش
نقاشی میکردند.
ما
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زمین ، یکپارچه است
دریا ادامهی کوه
کوه ادامهی دشت
و من ادامهی همهی آنها
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دلتنگی سفر به گذشته نیست..
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در امتداد چشمهایم
طلوع می کنی
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زِ این خطبه های انکار
زبان ها مو در آورده
سمع ها در اضطرابند
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اگر خاری به پای عتاب تو نشسته
بدان
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با تمام سختی می توان
مقاومت کرد
در کنار غرورر ت قلبت مهربان
برای خوشبخت ام
کاری انجام دادی
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شرم نقابی بر صورت دارد
تا صبح به آرزویی محکوم است
گویی تو این نوشته ها را همچنان با احساس می خوانی
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گِل بگیرید غم خانه را
مردم تمبان خاردار پوشیده اند
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ای آنکه در نبض برگها میتپی،
مرا در بر بگیر—
نه از بالا،
که از ریشهها،
از جایی که خاک
به آسم
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احساساتت
شبیه سمفونی عشــــق ست
میان هر فصل زندگی
مُووِمان آرام و پر از هیجان ...
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