يکشنبه ۲۵ آبان
شعر نیمائی
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به کجا مینگری؟
در افق چیزی نیست
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بوسهای تعارفم نکردهاست آفتاب.
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من از طرز نگاه تو
چنان مستانه لغزیدم
ندانستم خیالی و
شراب عشق نوشیدم
دلم را عاشقت کردم
نبودت ر
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دانه،درراه تقدیرنمی روید،
پیش ازانکه ریشه درمهروخردبدواند...
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امید ، آرزویی که در گذشته جا ماند
امید ، دلیل اشک هایی که به جا ماند
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عشق می ماند
هرچه انکار کنی
شب و روز بی وقفه حاشا کنی
پرده ای دل را بپوشی و پنهان کنی
عشق می
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لبانت سرختر از آتش دوزخ!
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در وصف جبر جغرافیایی، سیاسی، احوالات جوانی متاثر از جهانی پلید..
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من تمام شعرهایم را برایت خواندهام
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آری آن روز که در باور من گل کردی
من تنها و غریب
بیشتر از عدد خاطرهها خندیدم
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ابر گریان
باد حیران و سکوت دشت ها خالی ز آهوی های مشک افشان
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از ابتدای زن
تا انتهای زن
پهن است روی پهنهٔ پهنای پیکرت
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* سیل غم 🫧
ببار ای سیل غم
جانم به قربانت
که از تو مهربانتر
دوست نشناسم
و تو نامه
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* فراق
دگر گرد و غبار
گامهای مهربانش
طوطیایی دیده دلتنگ و
بیرنگم نخواهد شد
و دیگر آس
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* هیچ تا هیچ
در آیینه بخود نگاه میکنم
خسته ام از نرسیدن
از بدنبال هیچ دویدن
از بیدا
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شاید تویی
که سحرگاهان،
چو قطرهای شبنم،
روی برگهای سبزِ نیلوفرِ پیچان
مینشینی..
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یک شبی او با نوازش تَرکه را بر شانه زد
گفت «چِل» شب این سخن را مشق کن
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در این فصل پر تشویشِ پر آشوب
مرغ عاشق خسته و تنهاست ...
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* پرستوی تنها
بیکسی درد قریبی ست
که با من متولد شده است
تا زمانی که س
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ای دوست بخر کوچکی و طاعت حافض
کز رو الست مست می جام حسینیم
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بی تو بازمگذرم خورد به آن کوچه عجیب است
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* بذر و باران
مگر این بذر یادش میرود
آنروز بارانی
که در اعماق تار و تیره
خشکیده ای بود
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در شعاع شعف شیدایی
هر چه را می نگرم «جان» دارد
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کودکی بودم من
دست مادر دستم
و مدام می خندید
این دل کوچک بازیگوشم
شب چقدر شیرین بود
و پر از زم
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آهای !
ای دختر دیروزِ سکوت ..... هشدار !
آهای
ای دخترُ امروز صدا ..... هشدار !
ته دریا چاهی
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گفته بودم چو بیایی غم دل با تو بگویم
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* آزادی
گربه ام
ساعتهای متمادی
از پشت پنجره اطاق
به بیرون زل میزند
گویی
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Raindrops have kissed the park bench
🌦🌦🌦🌦
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دیشب گریستم
غریبانه با دلم
تنها عروسکم همدم
تنهایی من است
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کوزه خار کجاست
روزها در لب دیواری بلند
کودکی می خندید که صدایش چو غزل زیبا بود
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پیر در عشق توام کودکی اما در صبر
هوس عشق جوانی شده دامن گیرم
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* سرو و پاییز
من از پاییز رنگارنگ میترسم
چو برگانی که دل دادند
به این سرخی
به
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باز صدای غریبی
در کوچههای خالی ذهنم پیچید،
صدایی شبیه سکوت
صدایی که هرگز بر زبان نیامد
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شعری که روان گشت، آبی به کویر است
شاید که نسوزد، عشقش جگرم را !
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تمام ساعتهای روز
و روزهای سال
و سالهای عمرم را
در این کویر خشک
چشم براهت خواهم ماند
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یاد داری آن غروب سرد رفتن را
که حسی شوم در رگهای بودن جای خون میرفت ؟
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"به دنبال خدا هستی؟
به دنبالش نگرد اینجا خدایی نیست
بهدنبالش نگرد آخر خدایی من نمبینم
دلیل هستی
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خوش به حال هر که شانس آورده است
در میان کارتهای زندگی
قلب آس آورده است
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چه خطا گفت که رَه هست ز هر دل تا دل...
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درعبور از شوره زار پرهراس زندگی
ای مسافرای معما ای تمنای محال
چند سالی زودتر گر می رسیدم من به ل
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* چرایی زندگی
راه دشواریست
نامش زندگیست
در عبور از باغهای پُر گل این زندگی
ر
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تبار عشق
تو از تبار کدام حادثهای؟
از طلوع کدام فجر؟
و از کدامین مسیر نور
در من ظهور کرده
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پسندم آنچه را نَفسَم پسندد،
پسندم آنچه اهواء آن پسندد.
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ای سبب ساز پریشانی من
یک نفس با من بیتاب نشین
از من آن قصه غمناک شنو
در من آن دیده پرآب ببین
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سرشت آدمی و یک هراس پی در پی
دعا و بعد گناه و تمام او شد قی
تمام عمر به یک غرور مضحک باخت
صدای آن
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در من هزار زن به تماشا نشستهاند...
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پاییز میرسد که مرا مبتلا کند🍂🍁🍂🍁🍂
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"برنامه"
ای ایرانیِ سربلند
جهان درانتظارماست
ماخالق ایده ایم
برنامه ما
ایرانِ ٱباد
متمدن
و
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* باد پاییزی 🍁
سلام ای باد پاییزی
صدای روحبخش ِ
رفتن از این خانه را
با خش خش ِ برگان
و
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ای فروغ لحظه های ناب من
وی غروب دردهای زندگی
بود آیا که از این دیر سفر بازآیی؟
چشم من مانده به را
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تو بگو راه کجاست
تو بگو خانه ی ان عاشق بی تاب کجاست
تو بگو ماه کجاست
تو بگو تشنه ی ان صورت مهتاب
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منزل جانانه کجاست
درشفق بود که خندیدنگار
پروانه تغزل کرد
بانفس های غریبانه گلی به خاک بخشید
باغ
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پشت یک دنیای تاریکم
فارغ از هر چیز در خویشم
پر از تهی شده ام
خالی از نداشته ها
چقدر خسته و پیرم
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من اینجا با گلوی زخمی شعرم
که زخمی دیر با خود دارد از تن دادن و تردید
مینالم
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"خاک"
خاک؛
ای مادرِ گیتی،
هستهٔ حیات!
نباتات در تو ریشه دارند.
آب، رگِ زندگیِ تو —
نَفَست، خ
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* یوز ایرانی
چرا ایران
چرا این خطه خوبان
دگرباره سیه پوش و عزادار است
بروزی
داغد
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به تاریکی شب در گریه میآویخت
به تنهایی تنهایی
نبودش هیچ راهی چون
دلش پر بود از وایی
که از بید
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لرزش افکارت
زیر نور چراغ برق معلوم بود
دستت را توی جیبت کردی
تا پوزه ترس را به خاک بمالی
چشمانت
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* همچو شمعی در باد
همچو شمعی در باد
زندگی کاش
برافروختن شمعی بود
که برقصد
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بریدی از ثریا دل
به سوگ لاله بنشستی
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**آخر این عشق**
روزی به شهرت میرسد
این تافهٔ اندوه من
روزی به شهرت میرسد
حسرت آغوش ت
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ای عشق،ای عشق،ای آبی پسندیده......
ای بیکران به خلوت عاشقان درآمیخته....
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سفر
باز امشب روی این بام بلند
من و تاریکی شب تنهاییم
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عدالت،می آید
اگرمدح ازتملق خسته شود
وچاپلوس آیینه قدرت را،صیقل نزند،
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سوار آسانسور شد
نگاهی به خودش انداخت
دست کرد توی جیبش
کاغذ مچاله شدهای ته جیبش بود
با انگشتهای
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