يکشنبه ۲۲ مهر
اشعار دفتر شعرِ گل سنگ شاعر بردیا امین افشار
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و دُرست...
درد من و تو،
و دُرست...
جنگ ما و شما
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و من و انسان و یک زندگی عُقده
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نه نغمه لر چیخیر، زامان بویوندا
تاریخ میضرابی ینن، تاری چالاندا
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گینه قاچیر اوزوموزده کی ساعاتلار
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زندگی، در تابش خورشید، هویدا نمیشود مگر؟
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زندگی نیامده ،
آمد و سَر شد
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طغیان غروب در پس ابرها
جدال زرد وتُرنجی
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در تورق برگهای تاریخ
انسان هست و آرزوهای زیبایش
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هر بیر اینسان، آنا دیلینن
دونیانی و سِودانی تانیر
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بو گجه ده هر گجه یه تای
یوخسان دیه سن منه لای لای
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دیروز کجا مانده
که جنگلهایش سبز بود و...
چشمه های روانش سرد
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اینسان، اینسانی دا گورمور
هر یرده بویلانیپ دووار
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ینه اوره گیم ده بیر قوش اوچور
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بَس دیر، دا گوزله مک ایسته میرم
یتیشمیر، وردغین سوز دادیمه
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نامه ها برایت می نویسم
می دانم که نمی خوانی
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متن تئاتر زندگیست ،
برف و بوران و گلهای سرخ
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میخورند سرنوشت ها رقم
رنگ عشق میگیرد آسمان
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می پوسد حقیقت در تکه های زمان
چیست حال صحرایی که ندارد باران ؟
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این جا جهانیست نارسیده
دل در اینجا می کندعُصیان
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می شود که یادت را فراموش کرد ؟
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اولا بولر کی اینسان
اوزون ایتیرمیه
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هیهات
دیریست
آوای مرگ می آید
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فریاد می زند با زخمه
دل در تن تنبور
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بو بولوتلی گوی لردن
دییردیم قورتولسا یاغیش
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از آن زمان که می ریزد
از ماتمِ خشم ، سرود
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نه ایله شمیسن اوره گیم
زامان سنن ده قالمیه جاخ بویله
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بو ایل ده گورتولموش اولدی
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چه می شود که نسیم
نمی کِشد بر زلفِ جنگل شانه ؟
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روایت هر صحنه ، با روایتگر است
اوست که مغرض ، یا که دادگر است
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چه می شود کرد
که گلهای سرخ ...
نگردند پژمرده ؟
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او زامان کی قارانلیخ
شیرین زیندیگانلیخلارا باتانمادی
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آغلایان گوزلری
نه سن و نه من و نه تاریخ
هش زامان گولدوره نمه ریخ
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دونیا ایکی بولمده پایلاشیپدیر
بیری منیم یاشلی گوزلریم
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درد او دییر کی
اوتوروپ آمما قالخانمیاسان
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به گمانم ،
اشک سایه ها را
می باید که می دیدی
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دارقیندی
بو چاتدامیش گونلوم
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بو ایتگین دونیانین
اینان کی بونان چوخ
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در آن سوی دیوار تنهایی هم
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هر زامان گَل اویات منی
قارانلیخ گیریپ گون یاتاندا
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می توان ره توشه ها نهاد
در گوشۀ یک کوله
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بوگون اوره کلر یاسدی
گویلردن ایلدریم شاخیر
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زمستان زیبا هم که باشد
سرد است ...
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اینجا که خار و گل
در یک پیکر می گردند تفسیر
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از رود ارس تا دریای ارومیه
عشقِ وطن میکُند سَیلان
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تو چه میدانی ؟
از غُصههای عروسکی که
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گرمترین هم باشد
سرد است زندگی در قفس
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حرفی نمانده است برای گُفتن
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یک شب ،
رویایت هم که شده
میگذرد از آسمانم
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درد چون فریاد شود
تریاک مرهم نمی شود
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کلامی نمی دوزم ،
از دستنبند فشرده به دست
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با کدامین دل
می توان کرد آزاد
عشقِ در کُنجِ بیشه را
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زندگی لبریز نغمه هاست
نغمه هایی که می خوانند
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یادم ، غباریست از خاطری پاک شده
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در چشم بر هم زدنی
می چکد از آسمان
قطره های باران
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وقتی که ،
بهای نسیم ،
سنگین است ...
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بغض من درد است
آسمان را بر زمین می کِشاند
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نیست بینا ،
آن چشم ...
که بسته است
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خیز ...
تا رویم از کویرهای کور
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و در دمیدن بهار ...
بی شک ،
ساقه ها می رویند
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دیوارها ساکتند ،
درها البته بسته ...
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شب ، ستاره ها را ،
با چوب مُراد می راند
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چون بر دمید سحر ،
چشمانش را گشود ،
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زندگی طرحیست خاکستری
با نقش ها و صحنه هایی رنگارنگ
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کودکی دنیای شادیهاست
اما کودکان همه شاد نیستند
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وای از خورشیدی ،
که ندارد دیگر ...
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نگاهش روی به زرتشت بود
پندار و گفتار و کردار نیک
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بِرکه را دیده ای ؟
در خِش خِشِ برگهای زردش
سکوت را شنیده ای ؟
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فردا از آنِ کیست ؟
کدامین پروانه
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ساقی پُر کن پیاله را
از شرابِ نابِ کلمات
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با ضَجه هایم
می نوازم برایت ترانه
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صاباح یولدان یتیشن زامان
اورگیم قانات وروپ اوچاجاخ
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هر کس که میتواند
به دست میگیرد میکروفن
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با صدای بوئینگ
می شوم از خواب بیدار
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