شنبه ۶ مرداد
اشعار دفتر شعرِ آرامش درون شاعر افسانه احمدی ( پونه )
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جان بودی و جان مرا بردی و حاشا نیست
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جان من دور نشو ، دل ندهی دست کسی
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نسیم صبح را بی وقفه بر فرمانِ خود کردم
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دوباره دیدمت در خواب از جان گریه می کردم
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اول از ماندن خیال عشق را راحت کنید
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امشب از حوصله ی بی تو شدن آشوبم
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عمری از بی کسی ام سخت به خود پیچیدم
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برف پیری خودنمایی می کند روی سرم
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برام دیگه این نفسا ، ممنوعه شد ممنوعه شد
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برای ثبت اهدافت نزن جار و نکن بلوا
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تا که چرخاندم سرم طوفان امانم را گرفت
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بد ت، هیچ درختی به جوانه نرسید
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صدایم ک خداوندا که من از دهر می ترسم
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زمین جای قشنگی نیست راه آسمانت کو ؟
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یک شعر بلند است تماشای نگاهت
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موهای بی شانه میان باد و طوفانیم
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یک نفر آمد همه رنجِ جهانم را گرفت
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می زنم بر سر دیوان غزل چوب حراج
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پا گذارید به آرامش و دنیای کسی
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در ذهن گیج و خستهٔ من یک سوال است
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کفش های پاره ات را گوشه ای پرتاب کن
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برو دیگر نخوان در گوش من لالایی ات را عشق
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امشب عددی سوسک از اینور شده رد خانه بهم ریخت
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چشم زیبای تو را آسِ غزل می بینم
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میخوام با تو باشم همه لحظه ها
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عشق از قصهٔ دیوانه شدن می گذرد
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هوای خوب را بن می زند فقر
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قول دادم به دلم نشکنمش هیچ دگر
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من دلت را برده ام اما تو جانم برده ای
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دل می کَنم یک دفعه از منت کشیدن ها
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چون کوچه های جمعه ، بدجوری غریبم من
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راهی شدم این بار کجا ؟ هیچ ندانم
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با دلم گفتم که از این کرده ها پروا کند
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می روم از جمع و دنیای شما
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دست هایت را بده تا آسمان پر می کشم
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او نمی خواهد تورا ای دل تو بی تابی هنوز؟
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ای دل نبودم من برایت صاحب خوب حلالم کن
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در آن چشمان زیبایت دو دنیا عشق می بینم
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عمر خوشی های دلم همواره کوتاه است
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یک عمر نشد از قفس غم شوم آغاز
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امشب مرا سر به هوا کردی و رفتی
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رقص قلمت زیباست ای شاعر بارانی
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عشق آشوب قشنگی است مرا یاد دهید
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قصه از من و لفظِ بیانش با تو
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تمام ابرها را با هم امشب آشتی دادم
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امشب شب شعر است و شب قافیه بندی
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آمدی جانی ندارم در بدن دیر آمدی
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در دایرهٔ دنیا هرچند که گمنامم
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من از آشوب و جنگ و آتشِ خونبار بیزارم
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تو همان بیت نشان کردهٔ اشعار منی
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من شاخهٔ خشکیدهٔ افتاده ام آری
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خسته ام از این همه فریب ، سوالِ تکراری
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کنارت تا همیشه حال و بال بهتری دارم
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خوش به حالِ بالشی که زیر سر داری گلم
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تا نگاهت از کنارِ چشم من رد می شود
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باز افتاده به دامانم عذابی دیگر
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می روم آب کنم کوهِ غم و فاصله را
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این همه درد کشیدم ، که بمانی نروی
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هر روزو شب به حالِ دلم گریه می کنم
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تار مویی ز سرت کم بشود می میرم
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در مسیر زندگی صدها خطا دارد دلم
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بی تو این دل می شود پژمرده و زار و نزار
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ببخش ای عشق اگر دیگر به روی تو نمی خندم
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شام تاریک مرا شمع شبستان شده ای
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شاخهٔ نیلوفریِ باغ خانه دختر است
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تو ای نامت نُت زیبای لبها ، مرد میدانم
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امشب برای رفتنت تبدار و مُضطر است
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وادیِ عشق تو را بی باده پیمودم چه سود!
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باور نکنم دیگر باغم که ثمر دارم
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امشب فضای سینه ام بدجور نم دارد
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تلنبار است در دل های ما ، غم های بسیاری
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از لحظهٔ امضای حکم تو به نادیدن
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هر شبم چهرهٔ زیبای تو دیدن دارد
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دوست دارم زندگی را با تو و عطر بهاری
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یوسف شدی تا پس زنم شاه و زلیخایت شوم
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برو ای خندهٔ مستانهٔ او سر به سرِ من نگُذار
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روی ریلِ زندگی لَنگِ قطارِ بعدی ام
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