چهارشنبه ۱۴ آذر
اشعار دفتر شعرِ آواز درد شاعر جمیله عجم(بانوی واژه ها)
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درد آهش تا ثریا رفته است!
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خشکیده درما چشمه های روشن احساس!
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غصه ریزان است وچترپاره ای دردستمان!
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صداقت پلاکش هم اینجا گمه!
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مانند بغضی درگلو مانده
زندانی زندان احساسم!
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زندگی جان داده عمری کنج زندان شما!
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دوباره بوی باروت گرفته
پیراهن شعرم😔
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یک نفر جلوی چشمانمان دق کرد!
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دربغض های روی هم انبار...
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کارخانه ی تولید آزاراست اینجا!
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لااقل بگذاراینجا باخودم
کنج این دفتر رجزخوانی کنم!
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هی قفس پشت قفس ساخته عشق!
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پاییزخود درکوله اش غم داشت..
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لااقل مردانه تربا من به این میدان بیا!
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سرسجاده ی احساس عبادت کردم!
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دلم گرفته اززمین ازآسمان بگوفقط
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هی کوفتید برطبل جنگ و
دنیابه سازخشم رقصید!
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فقط عطرپیراهنت کافی است
که هرعابری راغزلخوان کند!
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بربوم دلم طرح گل عشق کشیدی
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برپیکرعریان شعرم پوشانده ام پیراهن عشق
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غم دردل اندیشه ام جاری است!
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می وزدازسمت نخلستان صدای ناله ای!
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سال هزاروسیصدغمهای رنگین!
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کمی خورشید می خواهد
برای صبح فردایش!
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سیب آفت زده قصه ی ما سم دارد!
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گفته بودم که جهان
باتوغمش هم خوب است!
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دیگر آغوش شعرهم
آرامش بخش نیست!
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تو تشنه جان دادی
واینک جهانی
تشنه ی توست!
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مردی نمانده
تاتبربردارداینجا!
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وچقدرخوشبخت است
دلی که خانه ی توست!
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باران می بارد
من می بارم!
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اینجا هیچ پنجره ای
رو به آرامش بازنمیشود!
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خوابهامان همه کابوس شدند!
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ازکوزه ها
بایدبفهمی حس لیلارا!
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سنگینی یک دردمزمن
برشانه های زندگی ماند!
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سیاه شد روی بهار
ازاین همه درد!
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کی به پایان می رسد این قصه این کابوسها!
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مجنون من تاکی فقط لیلا ببافم!
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دردبی مرحم این مردم را
تاکی آخربزندشاعرجار!
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بعدازتوغم آمد
به سلام دل ما!
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دنیابه کام عاشقان
هرگزنمی چرخد!
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اینجا غزل آباد
تنهایی است...
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بگذارکمی شعرببافم
برای تو!
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عمر لبخندت
چقدرکوتاه بود!
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ببین گم میشوددریا
میان گریه های من!
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خودم طوفانی ام اما
تورا آرام می خواهم!
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مهرعشق تو چنان خورده به پیشانی من
که به پایان نرسد عمرپریشانی من!
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مثل نسیمی می نوازی
ویرانگری مانندطوفان....
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آن مرد درباران نیامد!....
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پیوسته دراین مرکز حسرت زده ام لنگ!
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نزدیک می خواهم تورا از خویش دورم می کنی!
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بر مدارلحظه ها
خورشیدکم آورده ایم..
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عشق لامصب
بیا آزادیم راپس بده!
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آخرهرجاده فقط
به خانه ی تو می رسم!
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بگذاربه تنهایی خود
دل بسپارم...
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دخترساده ی اشعارمرا
تابی نیست!!
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عشق
درخون غزل های غریبم
جاریست!
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بالابپریم یا پایین
فرقی نمی کند!
وقتی .....................
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گاهی
زندگی روی گسل زلزله
.............................
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