جمعه ۱۱ فروردين
اشعار دفتر شعرِ روایات راوی عشق شاعر علیرضا حاجی پوری باسمنج راوی عشق
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شده جاری ز خون دل ، به نمکزار دفترم
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من ز خوابی بس گران برخاستم اینجا کجاست
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دست آزادی به زنجیر و زبان در کام مرگ
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روز ناخوش گشته عمرم حاصلم رنگِ سیاه
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دلم ویرانه ای گشته از اندوه و عذاب عشق
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شده فریاد سکوتی به بلندای عزا
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شده اندوه خوراکِ شب دل گریه که آب
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جادّه ای در روبرویم نیست روشن انتها
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دلِ دیوانه ام امشب هوایِ دیگری دارد
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شده هر شبم تمـــنّا ، که دَمی کنی محبّت
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چرا عشق آتش و اشک و خزان جاودان دارد
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گلِ سرخی که دادی عطر گیسویِ تو را دارد
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دلم از نقش رخِ عشق تو بیتاب شده
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شده سنگین نفسم گشته دلم برگ خزان
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هر چه گفتم من به باران بر چه میباری نبار
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آتش زدی دلم را ، ای یار دام گستر
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به چمن گشته خزان خنده و گلها ز غبار
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وطنم ، دشت گلِ لالۀ خونین و فغان
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شرر افتاده بجان سخن از غصّه و زار
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سخنان گشته به زنجیر و رهایی به خزان
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به بَرِ شعلۀ تو سوخته پروانۀ من
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من تو را در نغمههای باد و بارانها بدیدم
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دیشب دل من دیده تو را بوی تو میداد
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زده سرمای زمستان به دلم یخ زده جان
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بزند شب بد آوا به نوای نارواها
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شهر خالی شده از عطر گلِ یاس و سَمَن
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روز روشن چو شبِ تار بشد رنگ سیاه
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گوشها کر شده از زوزه و آواز تفنگ
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شده پاییز بهارم گل و گلزار چه شد
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شدم از دیدن میخانۀ خالی نگران
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دیشب دل من پرسید ، از آمدنِ طنّاز
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روزگاری بود عاشق بود چون افسانه ای
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دل من چه دیده از تو ، شده بیقرار و شیدا
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گذرم فتاد دیشب ، سر کوچۀ جدایی
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جام می من دوش بیفتاد و شکست
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یادم آید به شبی خوب در آن گلشن شاد
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گفتم به دلم خندد ، دیدم که بزد تلخند
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شده آن درّ و گُهر وارۀ مشکین صنمم
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آواره و ویلان به بیابان به شبی تار
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بشدم خیره به آهم شب سیلابی و بی تاب
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نقشی از خاطره هایت بدرخشید به یادم
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در حلقۀ مستانه ، با یار کنم نجوا
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هان باد صبا آید ، با یاد نگار آید
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این بارگَهِ باران ، اکنون شده غمخانه
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ای دیدۀ بارانی ، سیلاب نما رخسار
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صبحدم چون گوی زرّین از فلق آمد برون
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آن چشمۀ شیرین عسل فام کجا هست
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ای وای به مرغی که نبیند گل سوسن
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لب تیغ آمده شیدم که خزانم به حصار
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من عاشقم امّا همه دیوانه بخوانند
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تو ندیدی دل گمگشته کجا گشته اسیر؟
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قلبم چو بردی بی تنم بر بیت احزان می بری
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آورده نسیم سحری عطر دلارام
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چه کنم با دل من در تب و تابی شب من
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بزند دشنه به قلبم غم پنهان به شبان
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شده هر لحظه که کارش غم و آهی دل من
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چه قَدَر به دل بگفتم برود سراغ دلبر
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چو خزان گشته بهارم به زمستان چه کنم
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گنهم چه باشد ای دل شده ام چو شمع در باد
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صدای چک چک باران چرا آوای غم دارد
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