چهارشنبه ۱۴ آذر
اشعار دفتر شعرِ آتش احساس شاعر فریباایازی روزبهانی
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چلّه کشی ،قاب دل نحله فکرت مدام
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دخترکان کویرتاب از کف دادند
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تا حشر فرات از عرق شرم که جاریست
در حسرت دیدار حسین بن علی است
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معجزتی باید چونان تنفّس صبح
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باد و باران و شکست شاخه هایش را
ما تحمل آورده بودیم
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کلامم امتداد می یابد در واژه ای که مثل سابق نیست
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به راه معرفت می غیژ و می رو
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درهیاهوی زمان با دل رسوا چه کنم
دل تنهای زمین خورده خود را چه کنم
دل خریدار کمی شبنم غم آلوده ست
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"اما" های ما بسیار و" برای"های آنها خیلی
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تا به خود آمدیم
بوی پاییز از گنجه مادربزرگ پرید
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کنارت دل ،چه طوفانی شد امشب
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باد را گفتند:از حرکت بایست!
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شِکوه ای نیست شکستی دل لیلا، چه کنم
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گل من ز من جدایی ،چه کنم که بی وفایی!
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رنج نامه ست آنچه را پیگیر کردیم و نشد
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دلم را در تشت تنهایی چنگ می زنم
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آتش گرفت احساس من آبی رسان ای ماه من
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خسته ایم
از سیلی باد
در گوش باد
کاش یکی بیاید
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مهر پاییزی
فصل اول زندگی ست
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با زبان دل
دلم آهوی بستانت رضاجان
شده شیدای مستانت رضاجان
نظر دارد به خط هشتمین نور،
خراباتیِ سا
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زنبق ها با وزش دستان عشق
پر می گشایند
تا پلک آرزو
شب را به نسیم مزین کن
دلم پرواز شبانه
می خو
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عشق ممنوعه ندارد خانه ای کنج دلم
درقماری عاشقانه جاودانش کرده ام
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یونس های ما را پس نخواهد داد...
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هرکس به خودش وعده ی دیدار تو داده است
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شهر، آشوب بداندیشان سنگین دل شده ست
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حقیقت زیر پای احساس میمیرد
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دیروزت خراب امروزم شد پدر!
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جانمازت مادرمن نوش داروی دعاست
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گل من زمن جدایی چه کنم که بی وفایی
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پری دریایی !مرا به اقیانوس آرام ببر
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نوش داروی غزل درجان من جان من جامانده است
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غزل هایم چه بارانی شد امشب
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آتش گرفت احساس من آبی رسان ...
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