يکشنبه ۲۵ آبان
اشعار دفتر شعرِ آتش احساس شاعر فریباایازی روزبهانی
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هوای مرغ آمین دارد این دل
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برشانه هایت آیتی از ردّ باران نیست
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نقش دیبایی که ما با رشته ی جان بافتیم
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ای داد "از این در وطن خویش "که داری و نداری
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همرنگ با پاییز شو دیگر بهارت نیستم
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گاهی شود آیا که عقب گرد کنی دل؟
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ناز پنهان غزل پای چمن پیدا بود
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هرکس به خودش وعده دیدار تو داده است
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خورشید سردار حسین بن علی است
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با من فریبا می شوی سرمست و حیران می شوی
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زخم دارد شانه هایت پارهٔ تن ای وطن
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باغبان ! هر آنچه دیدی در چمن، حاشا مکن
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نپرس از او از این وادی رسد آیا به جانانش؟
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باز باران می زند ؛اما بهارم! نیستی
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دور از تو دلم تنک است ....
با شعر و غزل قهرم
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بیا به خلوت دلم گناه می خواهم
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دیدار تو پایان قمارمن و توست
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با هفت قلم سین نشود ؛سفره بهاری
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سفره روزی مردم از «تهی سرشار» شد
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دلهای همچون آفتاب از چهره ها پیداست
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ناترازی ست که بر گردن مردم زده یوغ
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عشق جاری در هوای خاطرم شد موج نو
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هوای بغض دارد آسمان چشم بارانی
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چشم کم سوی تو هم سوی شبی تار ولی
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قعر دریای توهم برج عاجش خالی ست
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"فریبا "عشق رویایی نهفته در شکیبایی ست
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تو همچون هُرم پاییزی بتاب از برج شیدایی
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یار دیرین غزل های شبانه مادرم!
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برای آنکه می داند ...ابری که باد و بارانش در تصرف خاطره هاست
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چلّه کشی ،قاب دل نحله فکرت مدام
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دخترکان کویرتاب از کف دادند
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تا حشر فرات از عرق شرم که جاریست
در حسرت دیدار حسین بن علی است
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معجزتی باید چونان تنفّس صبح
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باد و باران و شکست شاخه هایش را
ما تحمل آورده بودیم
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کلامم امتداد می یابد در واژه ای که مثل سابق نیست
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به راه معرفت می غیژ و می رو
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درهیاهوی زمان با دل رسوا چه کنم
دل تنهای زمین خورده خود را چه کنم
دل خریدار کمی شبنم غم آلوده ست
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"اما" های ما بسیار و" برای"های آنها خیلی
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تا به خود آمدیم
بوی پاییز از گنجه مادربزرگ پرید
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کنارت دل ،چه طوفانی شد امشب
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باد را گفتند:از حرکت بایست!
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شِکوه ای نیست شکستی دل لیلا، چه کنم
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گل من ز من جدایی ،چه کنم که بی وفایی!
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رنج نامه ست آنچه را پیگیر کردیم و نشد
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