پنجشنبه ۱۱ ارديبهشت
اشعار دفتر شعرِ گذشت ايام شاعر منصور شاهنگیان
|
|
وقتی تـَبـرها چوبِشان از جنگل ماست
|
|
|
|
|
امروز، ز دست ِ کرونا
دست ِِ من است ...
|
|
|
|
|
به یاد_ یار خود ،
خون گریه میکرد
|
|
|
|
|
با نقل و گل و لبخند
رفتیم به استقبال
|
|
|
|
|
در دیاری اینچنین بی عاطفه
|
|
|
|
|
تو ناصر ما بودی و
لوطی و ابر مرد ...
|
|
|
|
|
هرکجا پا گذاشتم ، دیدم
جنس بُنجُل ، نُخاله از چین داشت
|
|
|
|
|
زاینده رود عمری با ناز می خرامید
|
|
|
|
|
آری نمانده در شهر
جُز ریزگرد و خاشاک ...
|
|
|
|
|
اصفهان شهر شعر و آواز است
|
|
|
|
|
دیروز ارگ بَـم بود ،
امروز غرب میهن
|
|
|
|
|
بودَنَـت ، عاشقانه می چَـسبد
|
|
|
|
|
آه ای زنده رود ِ صد پاره
حبس در لوله های تاریکی
|
|
|
|
|
از اسب فتاده ام نه از اصل
ایرانی پاکباز ِ پارسم ...
|
|
|
|
|
نامَـردم اگر ترسَم
از دار کشیدن ها
|
|
|
|
|
به پـُل ِ خواجویت نـمی نـازی
یا به نقش ِ جهان و یا بـازار
|
|
|
|
|
به زیر ِ پای ندیدی
که دست و پا بشکست ؟
|
|
|
|
|
اصفهان با زنده رودش
زنده است ...
|
|
|
|
|
مباد بی زنده رود ، زندگی ...
|
|
|
|
|
من و تو در کلاس ِ شعر ناب ِناب
مشق ِ عاشقی کردیم ...
|
|
|
|
|
شاعری را دیدم
جیب هایش خالی
|
|
|
|
|
وای خشگم زد که دیدم ، زنده رود
خشگ و غمگین از سپاهان رفته بود
|
|
|
|
|
وای باز امشب ، کنار ِ پارک شد
قسمَـتش سرما و زخم و خستگی ...
|
|
|
|
|
من و تو در کلاس درس ِ "شعرناب "
مشق ِ عاشقی کردیم ...
|
|
|
|
|
شب ِ یلدا چه خوبه زیر کرسی
|
|
|
|
|
" شعر ناب " با تو کوک میشود ...
|
|
|
|
|
مزّه ء تند ِ سوسیس ُ کالباس ،
اِنـد ِ حال است ُ کلاس ...
|
|
|
|
|
" خواجوی " پیر یاد ِ
زاینده رود میکرد ...
|
|
|
|
|
بوی ریحان و کباب
عطر ِ بِـه های ردیف ِ لب ِ رَف
|
|
|
|
|
رفتند از کنارش پروانه های رنگین ...
|
|
|
|
|
گویا که مُـرد آخر ، زاینده رود ، افسوس
|
|
|
|
|
قصهء فیلم های فردین
جنگ ِ دارا و نداره ....
|
|
|
|
|
ریشه کن ، کی میشود تبعیض ، کی؟
|
|
|
|
|
دوره گردی امروز ، خبر آورد
قناتِ ده ِ بالا هم ، مُـرد ...
|
|
|
|
|
گفت ای جوجه شاعر غافل :
جای تقدیر ، یاوه می بافید ؟
|
|
|
|
|
به یکباره خودم را
در لباس ِ حاکمی دیدم
|
|
|
|
|
کو دست ِ پینه بسته ای
که آب ، بِـدِه به خسته ای
|
|
|
|
|
اسید و کوری و غم های
یک دختر ...
|
|
|
|
|
بر روی صحنه "ارحام"
نقشی دگر ندارد ...
|
|
|
|
|
گوید که تَـنَـم سوخت
عزیزان بشتابید
|
|
|
|
|
داد روحانی به مردم
این نوید :
|
|
|
|
|
مردم ِ نو کیسه و شهوت پرست
|
|
|
|
|
بیا بشنو که یار من چه ها داشت
|
|
|
|
|
بوسه زن بر دستهای مادرت
تا زنده است ...
|
|
|
|
|
در پارک ، ماتمی بود
از مرگ ِ رود ، دیروز ...
|
|
|
|
|
فکر و حواس ِ کودک معصوم
بر چند سکّه ی ناچیز ِ مَرد بود
|
|
|
|
|
شعر ناب ، با تو کوک میشود :
|
|
|
|
|
چه کسی گفت که رفت
جه کسی گفت که نیست
اشگها تان از چیست ؟
|
|
|
|
|
نا مَـردم ، اگر تَـرسم
از دار کشیدن ها
|
|
|
|
|
دیشب چنار پیری
در باغ گریه میکرد
|
|
|
|
|
آجیل ُ میوه ُ شیرینی ُ گز
می خاد خانوم ...
|
|
|
|
|
سال نو با عمو نوروز
میشه زیبا و قشنگ
|
|
|
|
|
پُـل ِ خاجو رو دیدی ، بَـعدی
بـرو ، نـقشی جهان ...
|
|
|
|
|
به لب ، خشگیده لبخندی
ز دیروز ...
|
|
|
|
|
کو شُـر شُـر ِ زلال آب
عطر گل و بوی گلاب ؟
|
|
|
|
|
گفتا که قایقی عشقم
حسابی ، داغو نِــس ...
|
|
|
|
|
یه قوری ، چای گلستان ُ
یه قندون ، پولِـکی ...
|
|
|
|
|
گویا که مُـرد آخر
زاینده رود ، افسوس ..
|
|
|
|
|
آیا در مورد ِ منزلت شاعر
با من موافقید ؟ لطفا بگویید
|
|
|
|
|
دیگر سقاخانه ها ، گریه ی
شمعهای نذری را ، شاهد نیست
|
|
|
مجموع ۱۴۴ پست فعال در ۲ صفحه |