يکشنبه ۲۵ آبان
|
|
|
|
ومن مأمور به،،تغییرنگرش
درزمین خشک تمدن
تانسوزند،ریشه ها
وٱبی سردباشم،برحلقوم داغ بیابان زدهٔ با
|
|
|
|
|
|
|
|
|
در ملاقات با شعر هایم
رها کن حرف های حبس شده را
تا بر خیزم از لا به لایشان
بردارم کلماتم را
|
|
|
|
|
|
|
|
|
عاقل: کجایی، هوش داری یا به خوابی؟
عاشق: برو پیرمرد! چه میفهمی زِ بی تابی؟
|
|
|
|
|
|
|
|
|
باز هم یاد تو افسار گسیخت
بر شب تیره ی من تار گسیخت
عشق از پنجره ی خواب دمید
نفس داغ خیال تو وز
|
|
|
|
|
|
|
|
|
غزل
به انجمن سرانجام جان رسانی
که هر انجام ارجمندت، جان رسانی
اگر در این ره، یک لحظه
|
|
|
|
|
|
|
|
|
در دلم شعله می کشد دیری است
آ تش خا طرات رفته و د و ر
می کشد شعله ، می کشد آری
تا رسا ند مر
|
|
|
|
|
|
|
|
|
پدر ققنوس، حقیر خاکستر او
هزاره هم نفس با بستر او
|
|
|
|
|
|
|
|
|
این دختر عاشق فراموشی بلد نیست
|
|
|
|
|
|
|
|
|
لبانت سرختر از آتش دوزخ!
|
|
|
|
|
|
|
|
|
سنتورم دستمه ، سازِتو بردار،
تا بریم پیک نیک
|
|
|
|
|
|
|
|
|
«قدح»! مگو سخنِ خشم با سفیه زمان
|
|
|
|
|
|
|
|
|
در این شهر قدم میزنم،
آهستهتر از رؤیا.
روی هر خانه را میخوانم،
مثل کتابی بینام،
که نویسندها
|
|
|
|
|
|
|
|
|
پشت دیوار نگاهم دردها خوابیده است
|
|
|
|
|
|
|
|
|
در دل شب می رسد آوای جان افشان عشق
در دم مستی فزای نم نم باران عشق
|
|
|
|
|
|
|
|
|
در بَغَل جانم قرینِ ناز شد
|
|
|
|
|
|
|
|
|
بنام عشق پاکم آمدم ای یار دلبر💙
🎶💕
💫💞
💙🤍💙❤️💗🤍💙
|
|
|
|
|
|
|
|
|
هوس بوسه کرده این دل از لبانت، ای لب شکر
دل را ویران کرده لشکر چشمانت، ای لب شکر
از خویش و تن بیگ
|
|
|
|
|
|
|
|
|
اصرار نکن هر آنچه دیدی باشند
|
|
|
|
|
|
|
|
|
من از پاییز میترسم، نه برفی، نه آغوشی
چرا هرچی بهت میگم تو دور از دست خاموشی
نزار این بغض سی سال
|
|
|
|
|
|
|
|
|
فکرِ تو اَم
تو،
فکرِ همه؛
همهمه
فاصله انداخت
بینِ من و تو.
آگرین_یوسفی
|
|
|
|
|
|
|
|
|
دلم به عشق تو کوک است، جان و جانانم
|
|
|
|
|
|
|
|
|
در وصف جبر جغرافیایی، سیاسی، احوالات جوانی متاثر از جهانی پلید..
|
|
|
|
|
|
|
|
|
آمــدم لــقـمــه بــگـیــرم کـه گـلــوگـیــر شــدم
مـن از ایـن زنـدگیِ نـکـبـتِ خـود سـیــر شـدم
|
|
|
|
|
|
|
|
|
در من زنی آتش زده آزادی اش را
خاموش کرده آرزوی عادی اش را
|
|
|
|
|
|
|
|
|
آهوی تو گشته دل از خلق رمیده...
|
|
|
|
|
|
|
|
|
قلبش شبیه نقشهی خاورمیانه و
زخم هزار درد که بر آن نشانه و/
اما هنوز در تپشی عاشقانه و/
در فکر دل
|
|
|
|
|
|
|
|
|
دلِ معشوق به تو میل و گرایِش دارد
|
|
|
|
|
|
|
|
|
به نام خداوند کیهان و ماه
نگارندهی مهر و آئین راه
|
|
|
|
|
|
|
|
|
✍️ ترانه سرا: م. مدهوش(یامور)🕊️
|
|
|
|
|
|
|
|
|
من تمام شعرهایم را برایت خواندهام
|
|
|
|
|
|
|
|
|
گیرم برسیم به هم در رویا...
|
|
|
|
|
|
|
|
|
سند بنام خودش زد که عاشق علی است
|
|
|
|
|
|
|
|
|
درآرامشِ صدات
دراینهمه امتداد
|
|
|
|
|
|
|
|
|
هوای شهر پریشان است و غناری بار بسته
زمانه، فتنهخیز است و دلطاووسِ شکسته
ز جهلِ مردم، بدخو
|
|
|
|
|
|
|
|
|
«راستیای در کار نیست، تنها برداشتهایند که هستند.»
(برداشت آزادی از نیچه)
|
|
|
|
|
|
|
|
|
باده خوریم روشن، تا روزگار باشد
در عالم مستی دمی با لیلی مشتاق باشد
|
|
|
|
|
|
|
|
|
عشق یعنی همه ی روح و روانت باشد
ذکرِ دلدادگیش وردِ زبانت باشد
|
|
|
|
|
|
|
|
|
بی تو به دوش میکشم آرزوی محال را
چون تو نمیبرد کسی از دل من ملال را
|
|
|
|
|
|
|
|
|
این همه ناز و تمّنا به کدامین بازار.....
صُفحات درصف گیسوی چلیپای تودید....
|
|
|
|
|
|
|
|
|
🌺این جهان با مهر و نیکی، وَه که جایی بهتر است
گر مدارا کردی و سازش، که راهی بهتر است
|
|
|
|
|
|
|
|
|
فروگشته به قلبم ، خارمُژگون سیاهی.....
خدایانوش دارویی رسان ازلب یارُم
|
|
|
|
|
|
|
|
|
کاش می شد سینه را شکافت ، دل را پرواز داد ...
|
|
|
|
|
|
|
|
|
آنگونه دعا میکنم افتم به دلت که
یونس ز خدا خواست رهد از دل ماهی
گردی ز دل سوخته ریزم سر سرمه
خطی
|
|
|
|
|
|
|
|
|
«زاهدانه_ لن ترانی»
همه از تو مینویسند ،
که تو، خالق جهانی
زاهد از تو مینویسد،
به دلیلِ آن
|
|
|
|
|
|
|
|
|
من بر سرِ بارِ خویش سربار شدم
|
|
|
|
|
|
|
|
|
برایـــم چاله پر آب اسن تنها
که آنهم چشمه یا دریا نگردد
وجودم تنگ ومیل ازگریه دارد
بسی بگرفته حال
|
|
|
|
|
|
|
|
|
جان پناه همیم ـ..
من وتو عاشق ودلداده و پناه همیم
درتنگنای زمان بخشش گناه همیم
هرگز به
|
|
|
|
|
|
|
|
|
من همان حکایت همیشگی
خط و منحنی و سازه های شاعرانه ام
|
|
|
|
|
|
|
|
|
خبر از مرگِ شعرِ من داری؟
|
|
|
|
|
|
|
|
|
چه کسی مرا رساند به سرای مهر و آبان
من خسته دل تو دریاب ز خزان و برگ ریزان
|
|
|
|
|
|
|
|
|
سپر بلای هم نشدیم چه فایده داشت...
|
|
|
|
|
|
|
|
|
درد امانتی ست شخصی ، نه ارثی که نسل به نسل بگردد
|
|
|
|
|
|
|
|
|
آری آن روز که در باور من گل کردی
من تنها و غریب
بیشتر از عدد خاطرهها خندیدم
|
|
|
|
|
|
|
|
|
چون بلوطی پیر عمری سایه سارت بوده ام...
|
|
|
|
|
|
|
|
|
شاید این لحظه همان ساعت مضطر باشد
|
|
|
|
|
|
|
|
|
من بودم و پایی که میگریخت ،
از روزگارخود
|
|
|
|
|
|
|
|
|
دل زمن برده است آن چشم فریبای او
اشک ها را در دل تنگم روان کرده است
سینه ام را آشنای درد وغم
|
|
|
|
|
|
|
|
|
یک من درون شعر من باقی
یک من شبیه حضرت باران
شورآفرینِ خسته از تیشه
با کِروها و خط کش و
|
|
|
|
|
|
|
|
|
🕯نشر خوبی ها🕯💥:
نیزبانِ تو
از نیزارِدورِ دستِ سکوت میگذرد.
و من
چشم در راهِ نوایی ام
که از ح
|
|
|
|
|
|
|
|
|
دیروز که رفته نخورم حسرتِ دیروز
در این قصه ؛ صبوران غالب و پیروز
گر روزگار رؤیایِ مرا کفن پیچ
|
|
|
|
|
|
|
|
|
رفتی از پیش من اما چه زود...
|
|
|
|
|
| مجموع ۱۳۵۷۸۸ پست فعال در ۱۶۹۸ صفحه |