شنبه ۱ ارديبهشت
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روزام بدون تو درست مث شبه
میافتم یاد تو هزار مرتبه
آشوب تو دلم باید کجا برم
گذشته بعد تو آب
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تموم کن فاصله ها رو
که اَشکام بوی خون میدن
دوباره بازم مثل هر شب
چشمام خواب تورو دیدن
بیا برگر
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جان ما رفت وجانان ما رفت
چه آسان مهرومهربان مارفت
باعشق بوسیدوبوییدزلف مرا
دل از دل کند وسامان ما
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تو
که باشی
حالِ
زمین خوب
جهان خرسند است...
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زلیخای من نگارپدر
زمستان منم بهار
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امروز را زندگی کردم
اما فردا
پشت پنجره
قبل از سحر
به داد تشنگیام برس.
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تغییر به نفع مردمت کشته مرا
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هـر كه بيند عاشقي بي دل ، فـريبا مي شود
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صلوات بر امام حسن مجتبی (علیه السلام)
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ایا ای دلبر مه رو کجایی در شب تارم
بیا ای گلرخ نیکو بگو جز تو که را دارم
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شب میلاد تو درهای رحمت خدا وا بود
غرق نور همه ی زمین و آسمان ها بود
رجب بود و ماه خدا از آن ج
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نه جای بوسه ماندنی است
نه جای زخم
چه روزهای زوج
چه روزهای فرد
ماه عابری که
با چراغ مهر می رود
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شیار عمیق پیشانی سر می زند گاهی به من
باران که می آید جوی آبی میشود پر پیچ و خم
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کورپەێ خەێاڵم،
لەت لەت کردوتە.
(کەڤتار)
ناوی دیکەی تەنیاییە!
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تقدیم به نگاه پر مهرتان 🥀
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ای ماه درونِ سینه ام
خورشیدِ به هنگامِ طلوع
در من اثری از من نیست...
تا کِی بِرَوم در پیله فرو
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باید چه کنم فصل غم انگیزم را
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امشب می خواهم
برای تو بنویسم
تا احساسم پرواز کند .
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آمد نسيم آن گُل مشكيـن عذار دوست
آن باد خوش نسيم ،زِ دشت و ديار دوست
تا مـي
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حسن بن علی تنهاست ،
چرا لبیک نمی گوئید ؟
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تپش قلب من از
زمزمه عشق تو بود
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مادرم خواسته چاقو بکشد بر سر من
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بهضی ها مثل بقیه
بعضی ها هم بهترینن
اونایی که فصل بعدِ
بعضی ها رو می نویسن
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اینجا بمان تنها نرو دستم زدامن وانکن
ایمان من بردی زکف کافر شدم حاشا نکن
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دنباله چشمش مژه دارد یا ستاره
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سراغ هر که غیر از تو ندارد سر رود چشمم
که سوی چشم من را گوید خدایت به من داد
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شاهد شعر من تویی شاعر شهره ات منم
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شیخ از سر سجده سربرآورد، ببین!
زاهد سر دیگ، لنگر آورد، ببین!
از لحظه ی آمدش، حرم، بوی عفن
باد آمد
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من واسه داشتنت،رویامو گُل زدم
من پشتِ این پِلکا، به درد زُل زدم
حکم و تودل کردی،قِسمَتِ هم بودی
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با ظهورت ره به عالم غیب باز شود
با ظهورت ره به عالم عیب راز شود
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روزگاربر دوستان و اشنایان و هم دوره هایه من سهل گذشت و
بر من تنها سخت
باشد همه چیز را به گردن گرف
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منم و کوچه باغ بی عابر
از هجوم نبود تو لبریز
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من شاعر با حجب و حیایی بودم
اشعار مرا چشم تو منشوری کرد
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دیده بودم چهره ات را در تب زیبای عشق
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حریم آستان چشم پاکش تولیت دارد
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تقدیم به همسر عزیزم سمانه هروی
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در سکوت هم می توان عاشق بود
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بگذارید که من فقط من باشم
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دراین شب های رمضان
خدایا گر تو باز آیی . بگیری دست تنها را
چه روشن می کنی از نورخود این قلب ش
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وقت است که گل دهی اگر خارایی
حیف است که گل دهی ز کف خار، آیی
از سنگ دمیده سبزه و صدها گل
وقت ا
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لبت گفتی که طعم شکّلاته...
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وقتی که دلم اسیر آغوشت شد
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آمـدم تا که سلامی بدهیم و برویم
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خــداونــدا تـو بـر مُـلـكـــت اميـــري
تــو هــر افتــاده اي را دسـتـگيـ
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دل را نجات میدهم از بند آرزو
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دلِ من بی تو به مانندِ دلِ سنگ شدست
رَهِ خود کم کن و باز آ که دلم تنگ شدست
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رقصِ مرگ براندامِ جوانِ عاشقِ اسیردرآغوشِ عشق
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نازنینا تو که رفتی زِغم اوازِ دلم
سازغم راچه خوشا میزنداتعاذ دلم
مانده جاخاطره برسینهٔ خونین نگه
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که تواند ، که از بین بَرَد فلسفه ای را ،
که شهادت را عسل میدانَد ؟
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بادبادگ به هوا رفت
من نگران
کودکیم چشم به رفتنش
دوختم...
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چرا هر شب دلم مانند اقیانوس طوفانیست
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اگـر بــر خلــق حــق ،آتــش فــروزي
تــو هـم بايـد در آن آتـــش بــســـوزي
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سلام بر خواهرم بانو زلیخا
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سرت در کوچه ها دعواست ، می بینی و خاموشی...
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تقدیر شاید باشد اینگونه شکستن
یک مرد، با یک سایه، تنها، سوی باران
شاید که تقدیر این چنین باشد ک
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خۆزگا،
داهۆڵێک بواێام
لە نێو بێسانی خەێاڵت
هەر لە بەێانی هەتا ئێواران
قاڵاوەکان نۆکێان بدا
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قلمم بر سر کاغذ که خبر دار افتاد
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عشق در جان و تنم اینبار غوغا کرده است
مجلسی غیر از غم هجران مهیّا کرده است
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