يکشنبه ۱۸ آبان
اشعار دفتر شعرِ شعرهای ناتمام(ب.شادزی) شاعر بهاره فرزان پور
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با تو گویم سرّ و اسرار دلم تا عشق باشد
تا بیایی تو به سوی ساحلم تا عشق باشد ...
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🍂🍁 . . . 💛🧡
سکوت کردم ... نه برای فاصله
برای شنیدن صدای دلت از شعرهایت ...
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احساساتت
شبیه سمفونی عشــــق ست
میان هر فصل زندگی
مُووِمان آرام و پر از هیجان ...
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ای دوست! ای پرسشگر،
چه میجویی در حیرت و چرا ...؟!
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گل سنگم چه بر سرت آمد ؟
گاهی از زیر بار فشار حادثه
احساس در بغض چمبره میزند
اما سکوت مجال فریاد
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شده گاهی زبانت بند بیاید؟
قدم هایت روی مرز تردید
تسلیم سایه ی دلخسته شود؟ ...
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اگر از حالم بپرسی، ملالی نیست
جز پچ پچ و نجوایی در حریر افکار
با حضور سنگین غربت تنهایی
و هزارا
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برای مهربانی در دشت سبز زندگی
پشت آلاچیق های یخ زده از احساس
فریاد زدم عشـــــــــق ...
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امشب،
بر لبهی نازک غرور ایستادهام
جایی که هزاران بار سکوتِ شب را
به جان خریدهام ...
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در چشم باور من، یک ذره احتمالی
از تو نمانده باقی، جز لحظه ی خیالی ...
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از راه رسیده جلوه های پاییز ...
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من شاعرم و شعر برایم دنیاست ...
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آخر یک شب
دل می زنم به دریا ...
چه شنا کنم ، چه غرق شوم
مهم آرامش آغوش بیکران دریاست ...
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آرام گرفته ام ...
مثل برفی که از حنجرهی آسمان
آخرین فریادِ سپیدش را سر داده باشد ...
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تن مرابا الماس ِ
سکوت بتراش
تا در قالب عشق ...
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ای دل ساده و زلال بهار
کمی گلآلود باش، که جهان
آیینهی پاکی را تیره میسازد؛
دل پاک باش ...
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عشــــق چیز کمی نیست
هر کسی عشــق را باور کرد ...
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سر نهادم همه شب بر سر دیوار جنون
شاید این بار شوم راضی به انکار جنون ...
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نمی دانم از این
دنیای کوچک درونم
چه می خواهم؟
قلبم اندازه یک منِ ساده
اما غم های دلم
اندا
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غیر من کیست در این غربت دل، دور و برت؟
صبر کن،گر چه رسیده ست به من،صد شررت ...
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هر بار
پشت سرم را میبینم
تو نگاهت را
به سمتی دور میبری
آنجا که هیچ سایهای
از من نیست ...
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امروز که آسمان شعرم آبی ست ...
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دوگل از نسل اهورایی و مهر و آریا
بین تان پیوند داده، دست زیبای خدا ...
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این بار ناجی من ! یک لحظه ای خطا کن
تیری به جای چشمم ، سوی دلم رها کن ...
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عشق یعنی تو فقط ، گرچه نظر بسیار است
از دل ما نگذر ، گرچه خطر بسیار است ...
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شنیده ام که عزّت
کسی خواهد یافت
که برساند خویشتن را
به عرش زلال انسانیّت ...
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تو را فریاد خواهم زد که این غم ماجرا دارد
ببخش ای خوب من ! این بغض این گونه صدا دارد ...
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ریزش منارههای اعتماد
فغان بی صدایی اند در حرمت اعتبار ...
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صدای حس تو پیچیده در میان باد
نمی شود بروی و نم
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از قلّه عشــღــق
سرزمینی را می توان دید
که در تنگنای سکوت خفته ست
از سرسبزی های بهاری اش
تنها غ
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باید که تو عادت بکنی زخم زبان را
تا غصه به یغما نبرد تاب و توان را ....
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قمار چشم تو کردم و باختم عجیب....
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قفس شکسته شد امّا ، هوای رفتن نیست
همیشه شوق رهایی برای رفتن نیست ...
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طرح لبخند تو عشقم ، دیده ها را کور کرد
چهره ی زیبای تو آینه را مغرور کرد ...
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برای دختر کولی که خوب می رقصد
برای لحظه ی بودا نشسته در معبد ...
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تو عاشقانه ترین فصل قصّه های منی
تویی بهانه ی بودن ، تو آشنای منی ...
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عشقِ سرکاری
زمانی خودش را نمایان می کند
که عاشق حالی از یار نمی گیرد ...
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منم آن ابر بی باران که بی تو من نمی بارم
بهارم، از تو لبریزم؛ تو ای اندوه بسیارم ...
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آیینه مرا صدا کرد
زیر طاقدیس چشمانم
هاله ای از غم سایه افکنده بود ...
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چه ساده در این رابطه سوختیم
من و تو فقط گریه اندوختیم ...
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دوستم داری عزیز دل ، من اما بیشتر
هر چه تو دلتنگ و مشتاق منی ، ما بیشتر
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بروم یا نروم ؟ موضعِ تان روشن نیست !
دلم از غصه پر و فرصت وا گفتن نیست ...
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می روم تا بعد این گم گشتگی پیدا شوم
راهی آن لحظه های خوب بی فردا شوم ...
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از عطر تو لبریز شده خانه ی عشقم
معلوم نشد نزد تو دیوانه ی عشقم ؟
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تا که می بینم تو را ، گفتار یادم می رود
عاشقت هستم ولی ، اقرار یادم می رود
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به جستجوی تو تا فصل انتها رفتم
همین که عطر تو آمد ، ندیده وا رفتم
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امشب ای حاصل رویای دلم، پر؛ وا کن
از تمامیِ جهان غیر دلم پروا کن
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اصلا بگو که راه من از راه تو جداست
چیزی عوض نمی شود این گفته نارواست
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باش تا شعر تو تحریر شود، بعد برو
عشق با چشم تو تکثیر شود، بعد برو
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تو عاشقانه ترین فصل قصّه های منی
تویی بهانه ی بودن ، تو آشنای منی
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درون کوچه ی خلوت شدم گریان، به یاد تو
چه بی تابانه پرسه می زنم این سان ، به یاد تو
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عشق یعنی تو فقط ، گرچه نظر بسیار است
از دل ما نگذر ، گرچه خطر بسیار است
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☆غزلیات بهار
به
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یک لحظه بیا روان شناست باشم
با حس جدا، روان شناست باشم
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نهال عشق در دستان سبز تو به بار آمد
تو بودی که به من گفتی *بهار آمد ، بهار آمد
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یک کمی از خلوتت بیرون بیایی بهتر است
مدتی است این چشم عاشق، خیره مانده بر در است
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من عشق و یادت را برای خویش می خواهم
هر حس شادت را برای خویش می خواهم
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همان که در غزلم عاشقانه جا می کرد
برای وزن غزل های من چه ها می کرد
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لب ایوان غزل بودن و با حسرت خاص
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تمام لحظه ی من پر شد از خیال تو دوست
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سپرده ام به تو قلبی که آشیانه ی توست
همین خرابه ی ویرانه نیز،خانه ی توست
کبوتری که به دست تو رام
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گفتی که تو با بهانه ها جوری تو
بین همه ی ستاره مشهوری تو
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من با تو تمام روزگارم عالی است
پاییز و زمستان و بهارم عالی است
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تو صاحب خانه ی قلبی تو را مهمان نمی بینم
تو را ای بیکرانِ عشق بی پایان نمی بینم
تو با صد وسوسه
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کاش ! آینه نمی گفت که زیبایی تو
نازنین! وسعت زیبایی دنیایی تو
وسعت یاد تو یک خاطره ی بی پایان
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در حرمت چشمان تو تفسیر شدم
در برکه ی لبخند تو تطهیر شدم
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رفتی و این دل شوریده به سامان نرسید
حیف شد قصه ی این عشق به پایان نرسید
مثل پروانه پُر از خواهش
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ای دلهره های بی درک من !
ای افسوس های بی مرز من !
در قدمگاه حسرت سوختی...
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گهی بادم،گهی آتش، گهی آب
گهی پنهان،گهی حاضر، گهی خواب
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قاصدک چشم هایت
نوید یک بهار دیگر را می دهد
زیر تلالو نور آفتاب ...
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گفته بودم که بمان، می روی اصراری نیست
گرچه دلتنگ توام ماندنت اجباری نیست
به دو چشمان سیاه تو قسم
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در وسعت تو کران دریا پیدا ست
در خنده ی تو شکوه رویا پیدا ست
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در وسعت زیبایی تو ذوب شدم
در باور رویایی تو ذوب شدم
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چشمان تو دروازه های یک شب یلدا
شعر نگاهت تازه های یک شب یلدا
در امتداد گیسوانت شب تبلور یافت...
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انگار هوای چشم تو بارانی ست
دریای عمیق چشم تو طوفانی ست
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شاعر چشم توام ، این مگر امکان دارد؟
ابر من ! تشنه تو میل به باران دارد
کاش ! آرامش چشمان تو پایان
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غروب !
از سر ما گذشت .
راستی !
از کناردلمان هم رد شد ...
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آهسته تر قدم بگذار
تا قلبم فرو نریزد.
هر قدمت، آوای بلند ویرانی است ...
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دست از عذر خواهی بردار بانو !
دل بکش از دلواپسی های کف آرزو
از جاده زمان رد شو...
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گرداب !
مرا ویران کردی، چه سود؟
چله عمر گرفتی ، چه سود ؟
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خاتون من !
خاتون گیسو کمند من !
مرا ببوس از دریچه احساس ...
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